उत्तराखंड के डीजीपी भी दरोगाओं और इंस्पेक्टरों के आगे बेबस दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मी रिमोट एरिया में ड्यूटी नहीं करना चाहते. डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि दरोगाओं और इंस्पेक्टरों को पहाड़ पर भेजना बड़ी समस्या है. मैदानी जनपदों से स्थानांतरित किए गए दारोगा और इंस्पेक्टर पहाड़ी क्षेत्रों में जाना नहीं चाहते. प्रशासनिक कार्यों में चुस्ती लाने के लिए उत्तराखंड में दो जोन बनाए गए हैं. गढ़वाल मंडल में ज्यादातर पहाड़ी जनपद और रिमोट एरिया हैं.
‘जुगाड़ और राजनीतिक दबाव से रुकवा रहे ट्रांसफर’
रिमोट एरिया में पुलिसकर्मी ड्यूटी करने से हमेशा बचते रहे हैं. पुलिसकर्मियों की नजर कुमाऊं मंडल पर रहती है. कुमाऊं मंडल में पोस्टिंग के लिए पुलिसकर्मियों का जुगाड़ और राजनीतिक दबाव काम आ जाता है. नैनीताल और उधमसिंहनगर दो जिले पुलिसकर्मियों की पसंदीदा जगह है. ट्रांसफर होने के बावजूद दरोगा और इंस्पेक्टर नैनीताल और उधमसिंहनगर छोड़ना नहीं चाहते. एक बार पोस्टिंग मिलने के बाद बराबर जमे रहना चाहते हैं. नैनीताल और उधमसिंहनगर से ट्रांसफर रुकवाने में राजनीतिक दबाव भी डलवाया जाता है.
पुलिस विभाग के सबसे बड़े मुखिया का छलका दर्द
कुमाऊं मंडल में 270 से अधिक सिपाही तैनात हैं. 40 से ज्यादा दरोगा और इंस्पेक्टर थानों में ड्यूटी कर रहे हैं. समय अवधि पूरी होने पर पहाड़ के जनपदों में ट्रांसफर किया गया था. लेकिन राजनीतिक पकड़ की वजह से तबादला आदेश को धत्ता बताया जा रहा है. ट्रांसफर के डेढ़ साल बाद भी पुलिसकर्मी कुमाऊं मंडल में जमे हुए हैं. मलाईदार थानों और चौकियों में काबिज पुलिसकर्मी जुगाड़ से बने रहते हैं. ऐसे में पहाड़ी इलाकों में नौकरी करनवाले पुलिसकर्मियों का मनोबल टूटता है. राजनीतिक पकड़ नहीं होने की वजह से उनको मनचाही पोस्टिंग नहीं मिल पाती. डीजीपी की सच्चाई से साफ है कि बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी भी दरोगाओं और कोतवालों के आगे बौने साबित हो रहे हैं. प्रदेश के पुलिस मुखिया आईपीएस अशोक कुमार का कहना है कि मैदान के दरोगा और कोतवाल पहाड़ नहीं चढ़ना चाहते.