खबर प्रहरी, हल्द्वानी। उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में खेले जाने वाले मुर्गा झपट और पिड्डू खेल अब 38वें राष्ट्रीय खेल में भी शामिल हो गए हैं। राष्ट्रीय खेल में इन्हें प्रदर्शनी खेलों के तौर पर शामिल किया गया है। जिससे प्रदेश के अन्य पारंपरिक खेलों को बढ़ावा दिए जाने की उम्मीदें जगने लगी हैं।
उत्तराखंड में नवंबर में प्रस्तावित 38वें राष्ट्रीय खेल की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। मुख्य खेलों के साथ ही पारंपरिक खेलों को भी बढ़ावा देने के लिए 38वें राष्ट्रीय खेल में पारंपरिक खेल को शामिल करने की फिर कवायद शुरू हो गई है। बकायदा इसके लिए खेल विभाग को निर्देश मिले हैं। साल 2015 में पहली बार 38वें राष्ट्रीय खेल में परंपरागत खेल शामिल करने की कवायद हुई थी। तब उत्तराखंड में परंपरागत खेल के लिए बट्टी, पिड्डू, फुटशाल, मुर्गा झपट और बाघ-बकरी के नाम प्रमुखता से सामने आए थे। इसमें से खेल विभाग ने मुर्गा झपट और पिड्डू को पारंपरिक खेलों में शामिल करने का प्रस्ताव बनाया है।
विभाग के अनुसार 38वें राष्ट्रीय खेल में यह सिर्फ प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल होंगे। इसमें जीतने वाले को मेडल नहीं मिलेगा। जानकारी के अनुसार कई अन्य राज्यों में भी ये खेल खेले जाते हैं, इसलिए इन खेलों को शामिल किया गया है।
साल 2015 में हुआ था पारंपरिक खेलों का आयोजन जुलाई 2015 में उत्तराखंड पारंपरिक खेल परिषद का गठन किया गया। इसमें अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज पद्मश्री जसपाल राणा को अध्यक्ष और धीरेंद्र चौहान को उपाध्यक्ष बनाया गया था। नवंबर 2015 में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के छोटे बेटे और पूर्व प्रदेश कांग्रेस महासचिव आनंद रावत ने ‘नशे के खिलाफ जंग, परंपरागत खेल खेलेंगे हम’ के नाम से देहरादून और हल्द्वानी में इसके आयोजन करवाए थे। मगर नई सरकार आने के बाद पारंपरिक खेल परिषद भंग होने से मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। अब दोबारा यह कवायद शुरू हुई है।